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होता है, तो वह कहने लगता है- अमुक बुराई
| तो उसमें भी है और इसमें भी है । यह कह बुराई तो बुराई है ।
कर वह समझता है, हम अपने विषय में क्या अपनी और
सफाई पेश कर रहे हैं। मगर ऐसा कहने से क्या पर की ?
क्या उसकी बुराई, बुराई नहीं रहती ? जो दूसरों की नुक्ताचीनी पुराइ दूसरा म आर अनको में हो, वह क्या से हमारा कोई सुधार उन
होने वाला । दूसरों को उसी बुराई का पात्र बतला नहीं है। देने मात्र से आप उस बुराई से बरी नहीं हो
सकते । बल्कि ऐसा करके आप अपनी बुराई को बढ़ावा देंगे और उससे छुटकारा नहीं पा
सकेगें। बुराई तो बुराई है । क्या अपनी और क्या पर की ?
अभिप्राय यह है कि युग का बहाना करके अथवा दूसरे व्यक्तियों का बहाना करके आप अपनी किसी भी बुराई को प्रोत्साहित न करें । जैसे आप अपने पड़ौसी की बुराई पर अंगुली उठाते हैं, उसी प्रकार अपनी बुराई को भी गौण न करें । आपके जीवन का मोड़ सत्य की ओर होना चाहिए । दूसरों की नुक्ताचीनी से हमारा कोई सुधार होने वाला नहीं है।
जब आप अपने पड़ौसी को लखपति या करोड़पति के रूप में देखते हैं और दिन-रात तृष्णा-राक्षसी के पंजे में फँसा देखते हैं, तो आप उसका अनुकरण करने लगते हैं । आप अपने हृदय में भी तृष्णा को जगा लेते हैं और सब कुछ भूलकर धनोपार्जन करने में जुट जाते हैं । सोचते हैं- यह इतना धनाढ्य होकर भी जब अपनी इच्छाओं और
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