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भय से शान्त रहना- फिर चाहे वह गुरु का भय हो, समाज का भय हो, राज का भय हो या डंडे का भय हो- सच्चा वैराग्य नहीं है। भय से तो पशु भी संयत रहकर चल सकता है। आप देखते हैं, पशु जंगल में चरने को जाते हैं, दोनों ओर हरे-भरे खेतो में धान की बालें लहरा रही हैं, खाने को जी ललचाता है, फिर भी वह इधर-उधर मुँह नहीं मार कर सीधा चला जा रहा है। क्या यह उसका संयम है ? यह संयम नहीं है, ग्वाले के डंडे का भय है ।
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