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जीवन में कभी इच्छाओं की पूर्ण संतुष्टि का समय ही नहीं आता और संतुष्टि न होने पर आनन्द भी नहीं मिल पाता ।
बड़े-बड़े चक्रवर्ती भी अन्त में हाय-हाय करते मर गए । सुभूम चक्रवर्ती, छह खण्डों का सम्राट् ! फिर भी एक अतृप्त इच्छा, दबी हुई कामना उसे सातवां खंड साधने को प्रेरित करने लगी । जिस व्यक्ति को छह खण्ड के विशाल साम्राज्य से भी आनन्द प्राप्त नहीं हो सका, सन्तोष नहीं हो सका, उसे सातवें खण्ड में भी वह कहाँ मिल सकता था ? यदि उसके मन की भूख मिटाने को छह खण्ड का साम्राज्य भी समर्थ नहीं हुआ, तो सातवें खण्ड में ऐसा क्या है, जो उसकी भूख मिटा देगा । वास्तव में आकांक्षाएँ /लालसाएँ मनुष्य को परेशान करती हैं । भगवान् महावीर ने कहा है कि ये आकांक्षाएँ आकाश के समान अनन्त हैं
इच्छा हु आगास-समा अणन्तिया। यह आशा-तृष्णा एक ऐसी नारी है, जिसके अनन्त बच्चे जन्में और खत्म हो गए,
आशा-तृष्णा एक परन्तु यह खत्म नहीं हुई। जिस दिन इच्छा |
ऐसी नारी है, पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी, उस दिन
जिसके अनन्त बच्चे और ठीक उसी दिन, उसी घड़ी अन्तर
जन्में और खत्म हो जीवन में आनन्द का एक अक्षय स्रोत फूट
गए, परन्तु यह निकलेगा । जिसके शान्त-निर्मल प्रवाह में
खत्म नहीं हुई। आत्मा को वह शान्ति प्राप्त होगी और वह आनन्द प्राप्त होगा, जिसका अन्तिम छोर । कभी आएगा ही नहीं । भौतिक सुख के छोर होते हैं, आत्मिक आनन्द का कोई छोर नहीं होता । वह तो सदा शाश्वत है, अनन्त है ।
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