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है, अपनी लालसाओं पर नियंत्रण स्थापित करना संतोष कहलाता है
और लालसाओं पर नियंत्रण करने के लिए अन्तःकरण को जीतना पड़ता है । अन्तःकरण को जीतना कायरों का काम नहीं है । इसके लिए तो बड़ी वीरता चाहिए । उत्तराध्ययन सूत्र में भी कहा है
जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिणे।
एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जओll एक मनुष्य विकट संग्राम करके लाखों योद्धाओं पर विजय प्राप्त करता है, तो निस्संदेह वह वीर है; किन्तु जो अपनी अन्तरात्मा को जीतने में सफल हो जाता है, वह उससे भी बड़ा वीर है । अन्तःकरण को जीत लेने वाले की विजय उत्तम और प्रशस्त विजय है। यही सच्ची विजय है। रावण बड़ा विजेता था । संसार के वीर पुरुष उसकी धाक
मानते थे और कहते हैं, अपने समय का वह
असाधारण योद्धा था । किन्तु वह भी अपने अन्तः करण को अन्तःकरण को अपने काबू में न कर सका, जीत लेने वाले की अपनी लालसाओं पर नियंत्रण कायम न कर विजय उत्तम और सका । और, उसकी निर्बलता का परिणाम प्रशस्त विजय है।
यह हुआ कि उसे इसी चक्र में फँस कर मर Das जाना पड़ा । उसने अपने परिवार को और
- साम्राज्य को भी धूल में मिला लिया और इस प्रकार अपने असंतोष के कारण अपना सर्वनाश कर लिया । रावण की कहानी पौराणिक कहानी है और बहुत पुरानी हो चुकी है, उसे जाने दीजिए । आधुनिक युग के एक वीर विजेता हिटलर की जीवनी को ही देखिये । हिटलर को या उसके देश जर्मनी को कोई आवश्यकता नहीं थी, वह समग्र यूरोप पर अपना अधिकार करें, ऐसा किये बिना वह जीवित
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