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लोग तत्त्व पर विचार नहीं करते और संख्या तथा परिमाण का ही हिसाब | चींटी के रक्त की लगाया करते हैं । एक आदमी ने दुनियाँ भर | एक बूंद का जितना की सम्पदा इकट्ठी कर रखी है और उसमें से | महत्व है, हाथी के हजार, दो हजार का दान दे देता है, तो धूम सेर दो सेर रक्त-दान मच जाती है- हलचल पैदा हो जाती है । एक का उतना महत्त्व साधारण गरीब आदमी अपनी हैसियत से नहीं है। ज्यादा एक रुपया दान कर देता है, तो उसके लिए कोई आवाज ही नहीं उठती । यह तत्त्व को न समझने का परिणाम है ।
यहाँ विचार करने की आवश्यकता है । एक चींटी ने अपने रक्त की एक बूंद दे दी, तो उसके लिए वही बहुत है । और हाथी सेर दो सेर खून दे दे तो उसका क्या है ? मैं समझता हूँ कि चींटी के रक्त की एक बूँद का जितना महत्व है, हाथी के सेर दो सेर रक्त-दान का उतना महत्त्व नहीं है।
इसी दृष्टिकोण से/तात्त्विक दृष्टि से हमें विचार करना चाहिए और संख्याओं के फेर में नहीं पड़ना चाहिए । संख्याएँ झूठी है और तत्त्व सत्य है, हमें सत्य को ही अपनाने की आदत डालनी है। बिना तत्त्व को समझे, जीवन का समाधान नहीं ।
एक बार बुद्ध वैशाली में पहुंचे, तो लोग हीरों और मोतियों के बड़े बड़े थाल भर कर भेंट करने के लिए लाए और समझे कि हमने बड़ा भारी त्याग किया है । उस युग की परम्परा थी कि भेंट पर हाथ रख दिया जाता था और उसका मतलब यह होता था कि यह भेंट स्वीकार कर ली गई है।
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