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के मूल को पहचाने बिना संघर्षों को दूर करने की कल्पना, कल्पना ही रह जाएगी । समस्त संघर्षों का मूल है, तृष्णा ।
ऊँचे से ऊँचे विचारकों ने ज्ञान की रोशनी दी, मगर लोभ का अन्धकार दूर नहीं हो सका, और आज का संसार उसी अन्धकार में भटक रहा है । कहने को तो मनुष्य ने विद्युत शक्ति पर भी अधिकार जमा लिया और उसके प्रकाश से दुनियाँ जगमगा उठी, परन्तु इस बाहरी प्रकाश ने मनुष्य के अन्तरतम में गहरा अन्धकार भर दिया । मनुष्य बाहरी प्रकाश की चमक में ही भूल गया और उसने अन्दर के तम को दूर करने के प्रयत्न को ही छोड़ दिया । बिना साधना के प्रकाश कैसे आएगा ?
महापुरुषों की दिव्य वाणी का जो
अलौकिक प्रकाश उसे मिला, वह उसे अमल में न लाकर उसे तो उसने सुनने तक ही सीमित रखा । जीवन में सीमा का होना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य भी है । बड़े-बड़े सम्राटों और राजाओं ने भी शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न किया, किन्तु वे सफल न हो सके । शान्ति स्थापित करने के लिए ही हवाई जहाज बने, रॉकेट बने और एटम बम भी, मगर ये सब भी दुनियाँ में शान्ति की स्थापना न कर सके ।
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केस
जीवन में सीमा का होना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य
भी है ।
केकी
बड़े-बड़े सम्राटों और राजाओं ने भी शान्ति स्थापित करने
का प्रयत्न किया, किन्तु वे सफल न हो सके । शान्ति
स्थापित करने के लिए ही हवाई जहाज बने, रॉकेट बने और
एटम बम भी, मगर ये सब भी दुनियाँ में शान्ति की स्थापना
न कर सके ।
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