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मुझे सन्तोष है । अगर आपको इसकी जरूरत है तो इसे आप ले लीजिए । मेरी चिन्ता जरा भी न करें ।
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उसके बाद जो दूसरे आये, उनसे सन्त ने आधा-आधा टुकड़ा मांगा । किन्तु कोई देने को तैयार नहीं हुआ ।
आखिर फिर एक लड़का निकला । सन्त ने उससे भी आधा टुकड़ा मांगा और मन्त्री बना देने को कहा । लड़के ने कहा- आधा टुकड़ा देने में कोई हर्ज नहीं है । और उसने टुकड़ा तोड़ कर आधा सन्त को दे दिया । उस लड़के को भी पहले वाले लड़के के पास खड़ा कर दिया गया ।
सब भिखारी चले गए तो सन्त ने राजा से कहा- राजा और मन्त्री दोनों के योग्य पुत्र मिल गए हैं । राजा में विराट् भावनाएँ होनी चाहिए, सर्वस्व त्याग करने की वृत्ति होनी चाहिए और प्रिय से प्रिय वस्तु को न्यौछावर करने का हौसला होना चाहिए । ये सब बातें इस लड़के में दिखाई देती हैं । रोटी का टुकड़ा इसके लिए बड़ी चीज थी, इसका सर्वस्व था, परन्तु इसने बिना किसी आना-कानी के उसे त्याग दिया है । दूसरे भिखारी उसी टुकड़े पर अटके रहे । सोचने लगे कि टुकड़ा दे देंगे, तो हम क्या खाएँगे । पर इसने ऐसा विचार नहीं किया । अतएव यह राजा बनने योग्य है
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राजा में विराद भावनाएँ होनी
चाहिए, सर्वस्व त्याग करने की वृत्ति होनी चाहिए, और प्रिय से
प्रिय वस्तु को न्यौछावर करने का
हौसला होना
चाहिए।
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