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से लगाए वहाँ से जाने लगे । सन्त ने देखा - कोई भी अपना पूरा टुकड़ा देने को तैयार नहीं है ! तब उन्होंने उनसे कहा- अच्छा भाई, आधा टुकड़ा ही दे दो । दे दोगे तो मन्त्री बना दूँगा ।
मगर गली के भिखारी को मन्त्री पद का स्वप्न आता, तो कैसे आता ? भिखारी निकलते गए और किसी ने आधा टुकड़ा भी नहीं दिया । किसी को विश्वास ही न होता था ।
कई भिखारियों के निकल जाने पर एक लड़का आया । उसकी आँखों में एक तरह की विलक्षण ज्योति थी, किन्तु दुर्भाग्य ने उसको भिखारी बना दिया था । लेकिन उसमें सोचने-समझने का मादा तो था ही । वह फाटक से निकलने लगा तो उससे भी पूछा गया - क्या मिला है ?
लड़का- यह रोटी का टुकड़ा ! जो हमारी तकदीर में था, मिल गया । आखिर भिखारी के भाग्य में रोटी के टुकड़े ही तो होंगे । हीरे-जवाहरात कैसे मिलते ? जो भी मिला, ठीक मिला ।
सन्त ने सोचा- इसकी वाणी में त्याग का रस आ गया है । यह अपनी मौजूद परिस्थितियों के अनुकूल अपने आपको ढ़ालने का प्रयत्न कर रहा है । इसे भविष्य पर भी विश्वास होना चाहिए ।
और सन्त ने उससे कहा- अच्छा, रोटी का टुकड़ा मुझे दे दो । मैं तुम्हें राजा बना दूँगा । लड़के ने गौर से देखा ।
लड़के ने कहा- राजा बनाएँ या न बनाएँ, टुकड़ा तो ले ही लीजिए । मैं तो बड़ी आशा लेकर यहाँ आया था; पर इस टुकड़े पर भी
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