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उत्तराधिकारी बनाने का प्रश्न ही पैदा नहीं होता । जीवन में संघर्ष भी होते हैं, प्रतिकूल परिस्थितियाँ भी आती हैं । हमें ऐसा उत्तराधिकारी नहीं चाहिए, जो ऐन मौके पर मैदान छोड़ कर ही भाग जाए, जो जीवन की कठिनाइयों का मुकाबला न कर सके ! ऐसा कायर पुरुष देश का और जनता का कल्याण नहीं कर सकता । ऐसे पुत्र को उत्तराधिकारी बनाना साम्राज्य के टुकड़े-टुकड़े कर देना है।
तो, सोचा गया- क्या दूसरे को उत्तराधिकारी बनाया जाए ? वह वीर है, बहादुर है और अन्त तक संघर्ष करने वाला है । किन्तु संसार में केवल तलवारों के भरोसे ही फैसला नहीं होता है । यह वह आदमी है, जो अपनी चीज की रक्षा करेगा और स्वयं मौज करेगा, किन्तु दूसरों को कोई सान्त्वना नहीं देगा; वह अन्याय
और अत्याचार के बल पर और तलवार के भरोसे पर दूसरों को समाप्त कर देगा। वह |
जो संघर्ष के समय प्रजा की भूख की परवाह नहीं करेगा। वह
| बुद्धिमत्ता का परिचय दे, भागेगा नहीं, जिन्दगी भर खून बहाएगा ।
| अपनी आवश्यकताओं तो, ऐसे आदमी को भी उत्तराधिकारी नहीं |
की भी पूर्ति करे और बनाया जा सकता है । वह तो देश में दूसरा का आवश्यकताआ अशान्ति की लहरें ही पैदा करता रहेगा ।
का भी ख्याल रखे, वही
योग्यता और सफलता शेष रहा तीसरा राजकुमार, बस | वही उत्तराधिकार के योग्य है । उसने खुद | संचालन कर सकता है भी खाया और किसी को डंडा भी नहीं
और प्रजा के प्रति दिखलाया- उसने बुद्धिमानी के साथ स्वयं वफादार रह सकता है। खाया और दूसरे को भी खिलाया । इस
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