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गिना जाए या आसव में ? यदि उसे संवर में गिनें तो वह संवर मोक्ष का मार्ग है, तो इसका अर्थ यही हुआ कि गृहस्थ का अहिंसा, सत्य आदि का मार्ग भी मोक्ष-मार्ग ही है, और इस रूप में दोनों का मार्ग अलग-अलग नहीं है। साधु का जीवन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्-चारित्र के मार्ग पर चलता है और श्रावक का जीवन भी इसी मार्ग पर चलता है । दोनों का स्तर अलग-अलग होने पर भी दोनों का मार्ग अलग-अलग नहीं है । दोनों का लक्ष्य भी एक ही है और गन्तव्य पथ भी एक ही है ।
आचार्य से प्रश्न पूछा गया कि मोक्ष का मार्ग क्या है ? तो उन्होंने उत्तर दिया- सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्ष-मार्गः।
अर्थात् सम्यग्दर्शन-सत्य का दर्शन, सत्य का प्रामाणिक ज्ञान और सम्यक्चारित्र का पालन, यही सब मिलकर मोक्ष का मार्ग है । तीनों मिलकर ही मोक्ष-मार्ग हैं। पहले सम्यग्दर्शन, फिर सम्यग्ज्ञान और पीछे चारित्र आता है । भगवान् महावीर ने भी उत्तराध्ययन सूत्र के 28 वें अध्ययन में यही कहा है
नादंसणिस्स नाणं, नाणेण विना न हुँति चरण-गुणा। अगुणिस्स नत्थि मोक्खो, नत्थि अमोक्खस्स निवाणं ll
अर्थात् जब तक तुम्हारे हृदय में, अन्तरात्मा में, सम्यग्दर्शन का आविर्भाव नहीं होगा, सत्य के प्रति दृढ़ आस्था नहीं होगी, तुम्हारे विश्वास में ढ़ीलापन रहेगा, सत्य के प्रति सुनिश्चित संकल्प जागृत नहीं होगा, तब तक सम्यग्ज्ञान भी तुमको नहीं होगा । केवल पुस्तकें पढ़ लेने मात्र से, शास्त्रों में माथा-पच्ची करने से और हजार दो हजार श्लोक या गाथाएं रट लेने से कुछ नहीं होगा। सच्चा ज्ञान, सत्य के प्रति दृढ़ संकल्प होने पर ही आ सकता है । अर्थात् जब तक सम्यग्दर्शन नहीं होगा, तब तक
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