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सारी दुकान तुम्हें समर्पण करता हूँ । मेरे भगवान् महावीर | पास क्या था ? आज मैंने काफी कमा लिया परिग्रह पर सीधी | है। लोगों में मेरी इज्जत-आबरू भी है। मैं चोट नहीं करते, पर कहीं भी दुकान खोलकर बैलूंगा तो कमा परिग्रह की वृत्ति पर खाऊँगा ! सीधा प्रहार
। गाँव वाले खेतान की यह उदार वृत्ति करते हैं।
देखकर दंग रह गए । सेठजी उस दुकान से
उतर कर फिर नहीं चढ़े । उन्होंने दूसरी जगह अपना व्यापार किया । यह दान नहीं, महान् त्याग था ।
यह उदाहरण क्या बतलाता है ! यही कि मनुष्य को संसार में पहली मक्खी की तरह बैठना चाहिए कि जब कभी ममता छोड़ने का अवसर आए, तो छोड़कर दूर हट जाए । इन्सान में अजब शक्ति है। उसमें जब ममत्व को तोड़ने की वृत्ति आती है, तब एक मिनट भी नहीं लगती । उस बन्धन को तोड़कर झटपट अलग हो जाता है। यही कारण है कि भगवान महावीर परिग्रह पर सीधी चोट नहीं करते, पर परिग्रह की वृत्ति पर सीधा प्रहार करते हैं।
भारतवर्ष में बड़े-बड़े साम्राज्यवादी और चक्रवर्ती आदि आए, परन्तु जब उन्हें परिग्रह छोड़ना हुआ, तो एक मिनट में छोड़कर अलग हो गए । साँप केचुली को ठुकरा कर जैसे उसकी ओर झांकता भी नहीं है, उसी तरह उन्होंने अपने वैभव को ठुकरा कर वापिस देखा तक भी नहीं । वे साधु बन गए । साधु बन कर भी उन्होंने वस्त्र और पात्र आदि रखे, किन्तु उनकी वृत्ति में उन वस्तुओं पर आसक्ति नहीं थी, ममता नहीं थी । अतएव वे वस्तुएं परिग्रह रूप भी नहीं थीं । निष्कर्ष यह
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