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बड़ी मुश्किल से एक टूटा-फूटा शिवालय का खंडहर मिला और उसमें हम ठहर गए । वहाँ चार यात्री और भी ठहरे हुए थे। हम शाम को पहुँचे थे और वे पहले से ठहरे हुए थे।
वहाँ जो ठहरे हुए थे, उनमें से दो एक ही स्थान के थे और वे किसी काम से बाहर गए थे। उनमें से एक पहले आ गया और आकर उसने देखा कि कोई उसकी चीजें उठा ले गया है । आते ही उसकी निगाह अपनी चीजों पर पड़ी और जब चीजें दिखाई न दी, तो वह समझ गया कि कोई उठा ले गया है; वह एकदम बड़ा निराश और हताश हो गया और गाँव वालों को हजारों-हजारों गालियाँ देने लगा । कहने लगा देना तो दूर रहा, उल्टा हमारा ही सामान उड़ा ले गए । बड़े दुष्ट हैं, इस गाँव वाले !
वह रंज में तो था ही, जब उसका साथी आया, तो उसे देखकर उसका रंज और बढ़ गया और वह रोने लगा । उसने कहा- इस गाँव में आकर तो तकदीर ही फूट गई ! कोई पापी कपड़े-लत्ते, बर्तन-भाड़े सब उठा ले गया । अब क्या होगा ?
उसके नये आये साथी ने कहा- वही आदमी, जो यहाँ बैठा हुआ था, ले गया होगा । पर उसका पता लगाना कठिन है। कौन जाने वह कौन था और कहाँ गया है ? खैर होगा कोई ! सामान ले गया तो ले गया, भाग्य तो नहीं ले गया । इस प्रकार कहकर उसने शोक-ग्रस्त साथी को सान्त्वना दी।
यह बात-चीत मैंने सुनी और सोचा- सामान दोनों का था, मगर चोरी हो जाने पर एक रोता है और दूसरा उसे सान्त्वना देता है । हानि दोनों की समान हुई है, किन्तु एक व्यथित हो रहा है और दूसरा कहता
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