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निकला कि जितने अंश में ममत्व है, उतने ही अंशों में परिग्रह है । जहाँ ममता नहीं, वहाँ बन्धन भी नहीं ।
__ एक चींटी है । उसके पास शरीर को छोड़कर और क्या है ? वह शरीर को लेकर चल रही है । उसके पास वस्त्र का एक तार भी नहीं है । दूसरी तरफ एक चकवर्ती है । वह लाखों-करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक है । मैं पूछता हूँ, परिग्रह किसमें ज्यादा है। ममत्व का त्याग दोनों ने नहीं किया है। चक्रवर्ती ने भी कोई मर्यादा नहीं की है, वस्तुओं को सीमित नहीं किया है, तो दोनों जगह परिग्रह है। दोनों में ही मूर्छा भाव है।
__ आखिर, परिग्रह अव्रत में ही है । एक भिखारी फटा वस्त्र का टुकड़ा लेकर फिरता है और उसने कोई व्रत-प्रत्याख्यान नहीं लिया है, तो वह परिग्रह के अन्दर है, भले ही उसके पास ज्यादा सामग्री नहीं है । परन्तु राजा चेटक इतना बड़ा धनी और वैभव का स्वामी होने पर भी अपरिग्रही था । इसका कारण यही था कि उसने श्रावक के व्रत ले लिए थे, वह व्रती था । पर गलियों के भिखारी ने कोई व्रत-नियम नहीं लिया था । अतएव अपरिग्रही राजा चेटक ही ठहरा, भिखारी नहीं । राजा चेटक ने सभी कुछ होते हुए भी परिग्रह की वृत्ति तोड़ दी थी, परन्तु भिखारी, अपने पास कुछ न होते हुए भी परिग्रहवृत्ति को, लालसा को लिए फिर रहा था । अतएव वह अपरिग्रह नहीं कहला सका था ।
तात्पर्य यह है कि जहाँ परिग्रह की लालसा है, लोभ है, ममता है और आसक्ति है, वहीं परिग्रह है, चाहे बाह्य वस्तु पास में हो न हो, जहाँ लालसा और ममता नहीं है, वहाँ चकवर्ती की ऋद्धि भी अपरिग्रह है । इसीलिए शास्त्रकार कहते हैं कि साधु वस्त्र-पात्र आदि बाह्य पदार्थ
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