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धन होने पर भी न वह स्वयं खाता, न दूसरों को खाने देता था । दूसरों की बात जाने दीजिए, वह अपने लड़कों को भी नहीं खाने देता था । कदाचित् लड़कों को अच्छा खाते-पीते देख ले, तो घर में महाभारत मचा दे । आखिर लड़कों ने सोचा- ऐसे कैसे जीवन गुजरेगा ? घर में रहेंगे, तो खाना-पीना और पहनना भी पड़ेगा । जिन्दगी है, तो बिना खाये-पीये कैसे चलेगी ?
लड़कों ने सेठ से कहा- हमको थोड़ी-थोड़ी पूँजी दे दीजिए, जिससे हम कमाते रहें और अपना जीवन चलाते रहें और इस धन
को आप मुर्गी के अण्डे की तरह सेते रहिए ! आखिर यह भी एक दिन हमें ही मिलेगा । सेठ ने कहा- पूँजी तो दे दूंगा । किन्तु ब्याज सहित मूल पूँजी वापिस लूँगा। लड़कों ने कहा- अजी, हम तो आपके ही लड़के हैं।
सेठ बोला- लड़के हो, यह तो ठीक है, पर धन को बर्बाद करने के लिए थोड़े ही हो । तुम मेरी मूल रकम ब्याज सहित लौटा देना । उस पूँजी से जो कमाओ वह तुम्हारा है। उसे मैं नहीं माँगूंगा। उसका अपनी मर्जी के अनुसार भोग कर सकते हो । आखिर लड़कों को यह शर्त मंजूर करनी पड़ी । उन्होंने कहा- तो ठीक है, हम परदेश जाकर कमा खाएँगें । सब ने पूँजी ले ली और परदेश के लिए विदा हो गए ।
___ सब लड़के चले गए, तो सेठ ने धन का बैल बनाना शुरु किया । बैल बनाने में उसका सारा धन लग गया। तब उसे जोड़ी बनाने की सूझी । बिना जोड़ी एक बैल किस काम का । और उसी तरह का दूसरा बैल बनाने के लिए वह अँधेरे-अँधेरे जंगल में जाता, लकड़ियाँ इकट्ठी करता और बेचता था । लकड़ियों से करोड़ों की पूर्ति हो सकती
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