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शिकारी कुत्ते उन पर छोड़ दिए गए । कुत्ते भोंकते हुए ज्यों ही कुमारों के पास आए कि उनमें से एक राजकुमार तो भयभीत हो गया । उसने सोचा- आज यह शिकारी कुत्ता मेरा ही शिकार करेगा ! क्या इसीलिए हमें बुलाया गया है । वह राजकुमार ऐसा सोच कर अपने प्राण बचा कर भाग गया और उसके भोजन को कुत्ता खा गया । दूसरा राजकुमार हिम्मत वाला और बहादुर था । वह भागा नहीं । उसने इधर- उधर देखा, तो उसे एक डंडा मिल गया । कुत्ता पीछे हट गया । राजकुमार खाने लगा । मगर कुत्ता फिर हमला करता और राजकुमार फिर उसे डंडा मार कर भगा देता । इस प्रकार राजकुमार और कुत्ते का द्वन्द्व चालू रहा और राजकुमार भोजन करता रहा ।
तीसरे राजकुमार की ओर जैसे ही तीसरा कुत्ता आया, तो वह न तो भयभीत होकर भागा और न क्रुद्ध होकर उसने डंडा संभाला, किन्तु अपने थाल में से जिसमें आवश्यकता से अधिक भोजन भरा था, कुछ टुकड़े कुत्ते को डाल दिए । इस तरह कुत्ता भी खाने लगा और राजकुमार भी आनन्द से खाने लगा । इस प्रकार जब-जब कुत्ता भौंका, तब-तब वह टुकड़ा डालता रहा । आखिर उसने भी आनन्द से भोजन किया और कुत्ते को भी सन्तोष हो गया । थोड़ी देर बाद कुत्ते की हमला करने की वृत्ति दूर हो गई । उसमें सहृदयता के भाव आ गए और वह दुम हिलाने लगा । दूसरे लड़के ने कुत्ते से लड़ते-लड़ते ही जैसे-तैसे अपना भोजन समाप्त किया ।
कहानी समाप्त हो गई और राजकुमारों की परीक्षा भी समाप्त हो गई । इसके बाद राजा ने मन्त्री से परामर्श किया- किसे उत्तराधिकारी बनाना चहिए ? दोनों ने सोचा- जो मैदान छोड़कर भाग गया, उसे तो
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