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प्रकार उसने अपने प्रतिद्वन्द्वी को भी अपना प्रेमी बना लिया । उसके पास अपनी आवश्यकता से अधिक जो साधन थे, उनसे उसने दूसरे को लाभ पहुँचाया । इसी प्रकार की वृत्ति की जीवन में आवश्यकता है । जो संघर्ष के समय बुद्धिमत्ता का परिचय दे, अपनी आवश्यकताओं की भी पूर्ति करे और दूसरों की आवश्यकताओं का भी ख्याल रखे, वही योग्यता और सफलता के साथ राज्य का संचालन कर सकता है और प्रजा के प्रति वफादार रह सकता है ।
जिस देश, समाज और परिवार में ऐसे उत्तराधिकारी होते हैं, वही देश, समाज और परिवार फलते-फूलते हैं । आखिर राजा ने उस तीसरे राजकुमार को अपना उत्तराधिकारी बना दिया । योग्य व्यक्ति का चुनाव कर लिया गया ।
संघदास गणी के इस रूपक का भाव यह है कि जब अपना उत्तराधिकारी बनाने का विचार करो, तब इस दृष्टिकोण से विचार करो । देख लो कि तुम्हें कायर और भगोड़े को उत्तराधिकारी बनाना है, दूसरों को डंडे मार-मार कर अपना पेट भरने वाले को उत्तराधिकारी बनाना है या स्वयं भी खाने और दूसरे को भी खिलाने वाले को अपना उत्तराधिकार बनाना है ?
अभिप्राय यह है कि आप जो परिग्रह इकट्ठा करते हो, तो उसकी मर्यादा कर लो और उस पर ऐसा एकाधिकारी मत बनाए रखो कि उसमें से कुछ भी किसी दूसरे के काम न आए । तुम्हारे साधनों से दूसरों का भी कल्याण होना चाहिए । समाज के लाभ में भी उनका व्यय होना चाहिए । समाज के लाभ में व्यय करते समय यही समझना चाहिए कि मैं अपने पापों का प्रायश्चित्त कर रहा हूँ, तो समाज और देश का
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