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इस रूप में दिशा-परिमाण का अर्थ यही है कि मनुष्य अपनी दौड़ का घेरा निश्चित कर ले । वहाँ तक मुझे जाना है और वहाँ से आगे नहीं जाना है। इस प्रकार अपने आपको तैयार कर लेने के लिए ही इस व्रत का विधान किया गया है । यह एक बहुत बड़ी क्रान्ति थी, बहुत बड़ा इंकलाब था ।
आज एक देश, दूसरे देश को लूटना चाहता है और जब जिसे मौका मिलता है, तो एक-दूसरे को लूटता है । सब देश म्यान से बाहर तलवारें निकाल कर खड़े हैं और चाहते हैं कि हमें ऐसी मंडियाँ मिलती रहें कि बिना किसी विघ्न-बाधा के हमारी लूट चलती रहे । इस प्रकार एक दूसरे का शोषण करना चाहते हैं और दूसरे के धन को अपने कब्जे में करना चाहते हैं । यह परिग्रह का भीषणतम रूप है ।
___ पहले जमाने में किसी राजा की सुन्दर कन्या होती थी, तो उसकी खैर नहीं थी । उस पर दूसरे राजा अपनी आँखें गड़ाये रहते थे। किन्तु लूटने की भावना इतनी नहीं थी । आज एक देश के दूसरे देश पर जो हमले होते हैं, वे व्यापारिक दृष्टि से ही होते हैं। किसी देश में तेल का कुआ निकल आया या यूरेनियम की अथवा हीरे की खान निकल आई, तो दूसरे देशों की आँखें उधर घूम जाती हैं । जब मौका पाते हैं, तो उस पर अधिकार करके उसे लूटने का प्रयत्न करते हैं । आजकल होने वाले युद्धों का मूल व्यापारिक लूट है ।
इस दृष्टि से भगवान महावीर की साधना एक महत्वपूर्ण सन्देश लेकर चलती है । वह सन्देश यही है कि पहले जीवन पर ब्रेक लगा लो । जहाँ तक तुम्हारी आवश्यकताएँ हैं, उनसे आगे न बढ़ो, न किसी देश पर कब्जा करो, न किसी देश के साधनों पर कब्जा करो और न दूसरे की रोटियाँ छीनने की कोशिश करो ।
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