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दूसरे लड़के की राजा बनने की भूमिका नहीं है, किन्तु उसने अपने हिस्से में से आधा टुकड़ा दे दिया है । मन्त्री बनने वाले में, राजा की अपेक्षा आधी योग्यता होनी चाहिए और यह योग्यता इसमें मौजूद है । अतएव दूसरा लड़का मन्त्री बनने योग्य है।
तो सन्त के कहने का तात्पर्य यह है कि संसार की जो वासनाएँ है, वे जूठे टुकड़े हैं । उन्हें छाती से चिपटाए क्यों फिर रहा है ? उन्हें
पूरी त्याग देगा, तो तुझे सन्त की गद्दी अर्थात्
साधुता प्राप्त हो जाएगी । और यदि उन जीवन में
वासनाओं को पूरी तरह त्यागने की शक्ति अनाकुलता ही तो
| नहीं है, तो कम से कम आधी तो त्याग ही सच्चा सुख एवं
दे । वासनाओं का कुछ भाग भी त्याग देगा, सच्ची शान्ति है।
तो सन्त की गद्दी न सही, श्रावक की पदवी
तो मिल ही जाएगी। ___ पूर्ण त्याग साधु की भूमिका है, और इच्छाओं को सीमित करना अर्थात् जितनी आवश्यकता है, उससे अधिक का त्याग कर देना, श्रावक की भूमिका है। और यहाँ आवश्यकता का अर्थ है- जीवन की वास्तविक आवश्यकता इच्छा को ही आवश्यकता मान लेना भूल होगी । जिसके अभाव में जीवन ठीक तरह निभ न सकता हो, वही जीवन की वास्तविक आवश्यकता समझी जानी चाहिए ।
जिस मनुष्य के जीवन में इन दो चीजों में से एक चीज आ जाती है, उसका जीवन कल्याणमय बन जाता है । वह इसी जीवन में निराकुलता और सन्तोष का अपूर्व आनन्द अनुभव करने लगता है ।
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