________________
सामने आ गया है । इस सूत्र ने जीवन की सफलताओं की कुंजी हमारे हाथ में सौंप दी है।
__ज्यों-ज्यों लाभ बढ़ता है, त्यों-त्यों लोभ भी बढ़ता है, और ज्यों-ज्यों लोभ बढ़ता है, त्यों-त्यों लाभ को बढ़ाने की कोशिश बढ़ती है। इस तरह लाभ और लोभ में दौड़ लग रही है। इस स्थिति में शान्ति कहाँ ? विश्रान्ति कहाँ ? शान्ति कैसे मिले ?
___कपिल महर्षि का उदाहरण हमारे सामने है। वह जितनी गरीबी में थे, उसमें दो माशा सोना ही उनके लिए बहुत था । उस पर ही उनकी आशा लगी थी । चाहते थे कि दो माशा सोना मिल जाय, तो बहुत अच्छा हो । कपिल उसे पाने के लिए कई बार गये, मगर उसे न पा सके ।
बात यह थी कि एक राजा ने दान का एक प्रकार से नाटक रच रखा था । उसने नियम बना लिया था कि प्रातःकाल सबसे पहले जो ब्राह्मण उसके पास पहुँचेगा, उसे वह दो माशा सोना भेंट करेगा । उस दो माशे सोने के लिए न मालूम कितने लोगों का कितना समय नष्ट होता था। उस दो माशे सोने को प्राप्त करने के लिए मनुष्यों की लालसा
जाग उठी थी, दरबार में एक अच्छी खासी
भीड़ लग जाती थी । परन्तु जिसका नाम ज्यों-ज्यों लाभ बढ़ता
| पहले नम्बर पर लिखा जाता, वही भाग्यवान् है, त्यों-त्यों लोभ भी
| उस सोने को पाता था । शेष सब हताश बढ़ता है।
होकर लौट जाते थे। ममता का त्याग ही | यह दान था या दान का नाटक ? सच्चा दान है। | इस मीमांसा में हमें नहीं जाना है । इतना
अवश्य कहना है कि इस प्रकार का दान
75