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प्रश्न के उत्तर में वह लोभी आदमी क्या कहेगा, क्या आप जानते है ? वह कहेगा
एक पहाड़ इसमें और खड़ा कर दो तो अच्छा हो । तो इस प्रकार के लोभ और इच्छाओं के पीछे बे- लगाम दौड़ने वाले के लिए, वे चाँदी-सोने के पहाड़ भी कुछ नहीं हैं । इतना अपरिमित धन भी उसके लिए नगण्य है । उसकी इच्छाएँ और भी बढ़ती जाएंगी, क्योंकि इच्छाएँ अनन्त है और अनन्त इच्छाओं का गड्ढा सीमित धन से कैसे भरा जा सकता है ?
एक सन्त किसी प्रयोजन से इधर-उधर गए । उन्होंने एक लोभी आदमी को देखा । उसे देखकर लौटे तो अपने चेले से कहा- देखा रे चेला, बिना पाल सरवर ! आज मैं एक ऐसे तालाब को देखकर आया हूँ, जिसका तट और किनारा ही नहीं है । तब शिष्य ने झट से कहाइच्छा गुरुजी, बिन पाल सरवर 1 अर्थात् गुरुजी ! आप ठीक ही देखकर आए हैं । यह कोई असम्भव बात नहीं है
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इच्छा का तालाब
वह तालाब है, जिसका कहीं ओर-छोर / किनारा ही
नहीं है । वस्तुतः तृष्णा का तालाब तट विहीन है ।
गुरुजी ने पूछा- असम्भव कैसे नहीं है ? तालाब है, तो किनारा भी होना चाहिए । बिना किनारे का तालाब कैसा !
चेला बोला - गुरुजी अन्य तालाब के तो किनारें होते हैं, पर इच्छा का तालाब वह तालाब है, जिसका कहीं ओर-छोर / किनारा ही नहीं है । वस्तुतः तृष्णा का तालाब तट विहीन है ।
गुरु ने सन्तोष के साथ कहा- तुम
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