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प्रकार से समझता है । जो गरीबी स्वेच्छा से जो गरीबी स्वेच्छा से स्वीकार नहीं की गई है और कुदरत की स्वीकार नहीं की तरफ से लादी गई है, वह शान्ति नहीं दे गई है और कुदरत | सकती । वही गरीबी, जो अपनी इच्छा से-अपने की तरफ से लादी | आप से धारण की गई है, अपरिग्रह को जन्म गई है, वह शान्ति देती है। यही है, अपरिग्रह । नहीं दे सकती ।
। स्वयं भगवान् महावीर की ओर
देखिए । वे राजकुमार अवस्था में हैं, और संसार के श्रेष्ठ से श्रेष्ठ सभी वैभव उनको प्राप्त हैं । उन्होंने प्रतिष्ठित राजकुल में जन्म लिया है, और अपनी आयु के तीस वर्ष उसी में गुजारे हैं । फिर भी उन्हें शान्ति नहीं मिली । शान्ति मिल जाती, तो वे घर क्यों छोड़ते ? यह प्रश्न हमारे सामने है । हमने इस प्रश्न को नहीं समझा, तो भगवान् महावीर के घर छोड़ने के उद्देश्य को ही नहीं समझा । और इसके विपरीत जिन्होंने यह समझा है कि शून्य-भाव से भगवान् ने घर छोड़ दिया, उन्होंने भगवान् महावीर को नहीं पहचाना ।
इस संसार में एक तरफ धन-वैभव की आग इकट्ठी हो रही है और दूसरी तरफ गहरे गड्ढ़े पड़े हुए हैं । एक तरफ लोग खा-खा कर मर रहे हैं, और दूसरी तरफ खाने के अभाव में मर रहे हैं। एक तरफ इतने कपड़े शरीर पर लदे हुए हैं, कि उनके बोझ से दबे जा रहे हैं, और दूसरी तरफ पहनने को धागा भी नहीं है। एक तरफ रहने के लिए सोने के महल बने हैं, और दूसरी तरफ झौंपड़ी भी नहीं है । इस प्रकार जो धनी हैं, वे भी मर रहे हैं और जो गरीब हैं, वे भी मर रहे हैं ।
तुम्हारे पास आवश्यकता से अधिक धन है, वैभव है और तुम चोरी नहीं करते हो, तो इतने मात्र से समस्या हल होने वाली नहीं है ।
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