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वह राजा का सारा राज्य ही लेने को तैयार हो गई । धिक्कार है- ऐसी इच्छा को, और धिक्कार है- ऐसे मन को, जिसमें विराम नहीं है, शान्ति नहीं है । यह इच्छा वह अग्नि है, जिसे शान्त करने के लिए ज्यों-ज्यों ईंधन डाला जाता है, त्यों-त्यों वह बढ़ती ही चली जाती है । ईंधन डालने से आग बुझ नहीं सकती । उसे शान्त करने की विधि ईंधन न डालना ही है । घृत डालने से आग अधिक बढ़ती है, कभी घटती नहीं है । पानी डालकर ही उसे बुझाया जा सकता है । तृष्णा की आग को लोभ से नहीं, सन्तोष से ही मिटाया जाता है ।
इस प्रकार लोभ-वृत्ति को समूल नष्ट करने की विचारधारा आई तो, वह महान् पुरुष अपरिग्रह के मार्ग की ओर चल पड़ा, और महर्षि कपिल के रूप में सारे संसार में प्रसिद्ध हो गया ।
एक दिन महर्षि कपिल ने पाँच सौ चोरों को देखा । उनके हाथ खून से रंगे थे । उदारता शब्द को उन्होंने कभी सुना भी न था । उस महर्षि की वाणी के प्रकाश में वे पाँच सौ चोर भी उनके शिष्य बन गए। और एक दिन उन्हीं महान् मुनियों की वह टोली संसार को शान्ति का सन्देश देने लगी।
चीन देश के एक राजा की बात है । उस समय सन्त कन्फ्यूसियस थे। उनके पास राजा आया । उसने निवेदन किया- देश में चोरी बहुत हो रही है । मैं उसे रोकने के लिए बहुत कुछ कर चुका हूँ, किन्तु वह बन्द नहीं हो रही है । कृपा करके ऐसा कोई उपाय बतलाइए कि वह बन्द हो जाए ।
सन्त कन्फ्यूसियस ने कहा- वास्तव में चोरी बन्द करवाना चाहते हो, तो तुम स्वयं चोरी करना बन्द कर दो। अपने लालच को अधिक
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