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जनता के मन में आग सुलगा देता है और उसकी प्राप्ति के लिए एक दौड़ लग जाती है । ममता का त्याग ही सच्चा दान है ।
कपिल जब भी गये, खाली हाथ ही लौटे । मगर लोक में प्रसिद्ध है कि आशा अजर-अमर है । कपिल ने महीनों तक दौड़-धूप की, इसलिए कि किसी प्रकार दो माशा सोना मिल जाए !
एक दिन तो उसकी स्त्री ने झिड़क कर कह दिया- तुम बड़े आलसी हो । समय पर उठते नहीं, समय पर पहुँचते नहीं, फिर सोना कहाँ से मिले ? प्रमाद त्यागो, तो सुवर्ण मिले ?
कपिल ने किंचित् सहम कर कहा- बात तो ठीक है, अच्छा, आज तुम मुझे जल्दी जगा देना ताकि सबसे पहले पहुँच जाऊँ ।
इतना कहकर और जल्दी से जल्दी जागने का संकल्प करके वह लेट गया । वह लेट तो गया, मगर उसे नींद नहीं आई। रात्रि के बारह बजे वह उठ बैठा और सीधा राजमहल की ओर चल दिया । वह इधर-उधर भटकने लगा । सिपाहियों ने देखा, आधी रात में भटकने वाला कोई भला आदमी नहीं हो सकता ? जरूर कोई चोर होगा और उसे चोर समझकर पकड़ लिया ।
कपिल ने बहुत कहा- मैं चोर नहीं हूँ। मैं दो माशा सोना लेने आया हूँ। पर किसी ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया ।
'क्या यह सोना लेने का समय है ?' कहकर सिपाहियों ने उसे कारागार में बन्द कर दिया । सन्देह में बन्दी बना लिया ।
प्रातःकाल कपिल को दरबार में हाजिर किया गया। उसके वस्त्र तार-तार हो रहे थे, भूख के मारे आँखें अन्दर धंसी जा रही थीं और वह हड्डियों का ढाँचा नजर आ रहा था । राजा की निगाह कपिल पर
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