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यही बात दूध के उफान के सम्बन्ध में है । नीचे जलती हुई आग शान्त हो, उफान शान्त हो । आग शांत नहीं होती तो उफान कैसे शांत हो सकता है ? लोभ मिटे, तो शान्ति मिले ।
यही बात लोभ के विषय में भी है । मनुष्य आज क्या कर रहा है ? उसके भीतर लोभ की आग जल रही है और उसकी तृष्णा उफन-उफन कर ऊपर आती है । जो त्याग और वैराग्य की बातों के छींटे दे-दे कर उसे शांत करना चाहता है, वह थोड़ी ही देर के लिए ही उसे भले शान्त कर ले, मगर जब तक लोभ
6 की आग को ठण्डा नहीं करता, स्थायी
लोभ मिटे, तो शान्ति शान्ति कैसे हो सकती है ? इच्छाओं की |
मिले। पूर्ति भी शान्ति नहीं ला सकती, क्योंकि इच्छाओं का कभी अन्त नहीं होता। परिमित धन से भगवान् महावीर ने एक बहुत सुन्दर
अपरिमित आकांक्षाएँ बात इस विषय में कही है । संसार में जो
किस प्रकार तृप्त की धन है, वह परिमित है, अनन्त नहीं है और
___ जा सकती हैं ? मनुष्य की इच्छाएँ अनन्त हैं । ऐसी स्थिति में परिमित धन से अपरिमित आकांक्षाएँ किस प्रकार तृप्त की जा सकती हैं ? जिनमें करोडों मन पानी समा सकता हो, उस तालाब में दो-चार चुल्लू पानी डालने से क्या वह भर जाएगा ? भगवान् ने उत्तराध्ययन सूत्र में कहा है -
जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवड्ढइ ।
दो मास-कयं कज्जं, कोडिए वि न निठ्ठियं ।। यह एक महान् सूत्र है । इसमें जीवन का असली निचोड़ हमारे
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