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जो निर्धन हैं, वे भी अशान्त हैं । लूटमार मच रही है। सर्वत्र परेशानी और बेचैनी है। इन सब का मूल कारण परिग्रह है।
आज की लड़ाइयों का मूल परिग्रह ही है । परिग्रह के लिए ही यह लड़ाइयां लड़ी जा रही हैं। किसी समय मान-प्रतिष्ठा के लिए अथवा विवाह-शादियों के लिए लड़ाइयां होती थीं । किन्तु आज की लड़ाइयों का उद्देश्य यह नहीं है । बहुत बड़ी प्रतिष्ठा पाने के लिए अथवा चकवर्ती बनने के लिए आज युद्ध नहीं होते हैं । इन युद्धों का उद्देश्य मण्डियां तैयार करना है, जिससे कि विजेता राष्ट्र अविजित राष्ट्र को माल देता रहे और लूटता रहे । आज व्यापार के प्रसार के लिए युद्ध होते हैं ।
इस प्रकार व्यापार के लिए ही युद्ध प्रारम्भ किये जाते हैं, लड़े जाते हैं और व्यापार के लिए ही समाप्त भी किये जाते हैं । गहरा विचार करने पर यही एक मात्र आज के युद्धों का उद्देश्य समझ में आता है। विश्व में धन की पूजा हो रही है ।
दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है, कि आज विश्व में जो भी अशांति है, उसका प्रधान कारण परिग्रह है। परिग्रह के मोह ने एक राष्ट्र को, दूसरे राष्ट्र को चूसने और पद-दलित करने के लिए ही प्रेरित नहीं किया वरन् एक ही राष्ट्र के अन्दर भी वर्ग-युद्धों की आग सुलगाई है।
पूंजीपतियों और मजदूरों के बीच जो संघर्ष चल रहा है, जो दिनों-दिन भयानक बनता जा रहा है, जिसके विस्फोटक परिणाम बहुत दूर नहीं हैं, उसका कारण क्या है ? परिग्रह के प्रति अतिलालसा । जिस अतिलालासा के कारण, एक वर्ग दूसरे वर्ग की आवश्यकताओं की उपेक्षा करके अपनी ही तिजोरियां भरने की कोशिश करता है, उसी ने वर्ग-संघर्ष को जन्म दिया है । उसका अन्त कहाँ है ?
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