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मिले । और जो बबूल बो रहा है, उसे आम कहाँ से मिल जाएँगे ? यह तो निसर्ग का अटल नियम है । इसमें कभी विपर्यास नहीं हुआ, कभी उलट फेर नहीं हो सकता है । अनन्त - अनन्त काल बीत जाने पर भी यह नियम ज्यों का त्यों रहने वाला है ।
यह जीवन राक्षस - जीवन है या दिव्य-जीवन है ? इस प्रश्न का निर्णय यहीं होना चाहिए और स्पष्ट निर्णय हो जाना चाहिए । जो इस अटल और ध्रुव सत्य को भली-भांति पहचान लेगा, वह निर्णय भी कर लेगा ।
जीवन का अर्थ क्या है ? जो यहाँ देवता बना है, उसको यहीं मालूम होना चाहिए कि वह आगे भी देवता बनेगा, और जिसने दूसरों के आँसूं बहाये हैं, दूसरों की जिन्दगी में आग पैदा की है, दूसरों का हाहाकार देखा है और देखकर मुस्कराया है, वह आदमी नहीं राक्षस है और उसके लिए देवता बनने की बात हजारों कोस दूर है । उसके लिए तो वही बात होगी कि उस पर दुनियाँ हँसेगी और वह रोएगा ।
स्वर्ग की कामना करे और नरक के योग्य काम करे, तो स्वर्ग कैसे मिल जायेगा ? इसके विपरीत, मनुष्य संसार में कहीं भी हो, यदि उसके विचार पवित्र है और उसने दुनियाँ के कांटों को चुना है हटाया है, मार्ग को साफ किया है, किसी भी रोते हुए को देखकर उसके हृदय से प्रेम की धारा बही है, तो फिर स्वर्ग उसे मिलेगा ही । ऐसे व्यक्ति को स्वर्ग नहीं मिलेगा तो किसे मिलेगा ?
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सि
अपने जीवन को देखो और अपने
ही मन से बात
करो, तो पता चल जाएगा कि
तुम्हारा अगला जीवन क्या बनने
वाला है ?
किसी