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संसार में ऐसे व्यक्ति भी होते हैं, जो
अपने स्वार्थ के लिए और अपनी लोलुपता के लिए करोड़ों मनुष्यों का रक्त बहाने में संकोच नहीं करते और स्नेही गुरुजनों की हत्या का कलंक भी अपने सिर पर ओढ़ने को तैयार हो जाते हैं ! यह सब किसलिये है ?
आखिर मनुष्य इस प्रकार पिशाच क्यों बन जाता है ? कौन - सी शक्ति उसके विवेक को कुचल देती है ? यह सब बढ़ती हुई इच्छाओं का प्रताप है । जिसने अपनी इच्छाओं को स्वच्छन्द छोड़ दिया और उन पर अंकुश नहीं लगाया, वह मानव से दानव बन गया !
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और वह दानव जब इच्छाओं पर नियन्त्रण स्थापित कर लेता है और सही राह पर आ जाता है, तो फिर मानव, और कभी-कभी महामानव की कोटि में भी आ जाता है । और इस रूप में बड़े विचित्र इतिहास हमारे समाने आते हैं ।
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जिसने अपनी इच्छाओं को स्वच्छन्द छोड़ दिया और उन
पर अंकुश नहीं
लगाया, वह मानव से दानव
बन गया !
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दानव जब इच्छाओं पर नियन्त्रण स्थापित कर लेता है और सही राह पर आ जाता है, फिर मानव, और कभी-कभी महामानव की कोटि में भी आ
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कई ऐसे भी होते हैं जो अपने-परायों का खून बहाकर जनता की निगाह में ऊँचा बनने के लिए बाद में भक्त बन जाते हैं । कोणिक ने यही किया । घोर अत्याचार करने के बाद वही कोणिक, भगवान् महावीर का शिष्य बनता है और जब तक उनके कुशल समाचार नहीं सुन लेता है, पानी का घूँट भी मुँह में नहीं लेता है । वह उस गन्दगी
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