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को साफ करना चाहता है, और उन धब्बों को धोने के लिए महापुरुषों के चरणों का आश्रय लेता है।
भगवान् महावीर के समाने हजारों की सभा जुड़ी है । कोणिक ने चाहा कि भगवान् महावीर से मर कर स्वर्ग पाने का फतवा ले लूँ । वह सोचता है कि मैंने जो भक्ति की है, उससे मेरे सभी पाप धुल गये।
सच्ची भक्ति से पाप धुल भी सकते हैं, किन्तु जहाँ दिखावा ही है और अपनी प्रतिष्ठा को कायम रखने की ही भावना है, जहाँ मन में भक्ति का सच्चा और निर्मल झरना नहीं बहा है, वहाँ एक भी धब्बा नहीं धुलता है।
कोणिक ने प्रश्न किया- प्रभो ! मैं मर कर कहाँ जाऊँगा ?
भगवान् ने कहा- यह प्रश्न मुझसे पूछने के बदले, तुम्हें अपने मन से पूछना चाहिए और उसी से मालूम करना चाहिए । प्रश्न का उत्तर देने वाला तो तुम्हारे अन्दर ही बैठा है । तुम्हें स्वर्ग और नरक की कला तो बतलाई जा चुकी है। अब तुम अपने अन्तरात्मा से ही पूछ लो कि कहाँ जाओगे ?
सुच्चिण्णा कम्मा सुचिण्णफला हवन्ति,
दुच्चिण्णा कम्मा दुचिण्णफला हवन्ति । अच्छे कर्मों का अच्छा फल मिलता है और बुरे कर्मों का बुरा फल मिलता है।
गेहूँ बोने वाले को गेहूँ की ही फसल मिलेगी, यह नहीं कि जब वह फसल काटने जायेगा तो उसे गेहूँ के बदले जुवार की फसल खड़ी
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