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विषमता एवं संघर्ष की जड़ है- इच्छा । इच्छाओं पर नियन्त्रण न होने के कारण ही मनुष्य आवश्यकता से अधिक संग्रह करता है। वह अपने स्वार्थ के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं देख सकता । इसी कारण परिवार, समाज एवं देश में असमानता एवं विषमता की विष बेल पल्लवित-पुष्पित होने लगती है। मानव मन में ईर्ष्या, द्वेष एवं संघर्ष के भाव उबुद्ध होते हैं और ये विचार ही युद्ध का उग्र रूप धारण करते हैं । इसके उन्मूलन का एक ही उपाय है- इच्छा एवं अनावश्यक संग्रह की भावना का परित्याग कर देना ।।
अपरिग्रह, विश्व-शान्ति का मूल है। अनासक्ति स्वर्ग
अपरिग्रह- साधना का प्राण है, जीवन है | और मोक्ष का द्वार और परिग्रह मृत्यु । अपरिग्रह- अनासक्ति अमृत | है और आसक्ति है और आसक्ति विष । अनासक्त भावना
नरक का । स्वस्थता है और आसक्त भाव रोग । अनासक्ति
06 धर्म है और आसक्ति पाप । अनासक्ति स्वर्ग
और मोक्ष का द्वार है और आसक्ति नरक का, अधःपतन का द्वार और संसार-परिभ्रमण का कारण है ।
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