________________
बाल पक गये हैं, मगर सिंहासन नहीं त्याग
रहे हैं । नहीं त्याग रहे हैं तो त्याग करा देना हिंसा का जन्म
चाहिए, नहीं मर रहे हैं तो मार देना परिग्रह से होता है।
चाहिए । इसके अतिरिक्त और उपाय ही निरंकुश इच्छाएँ | क्या है ? हिंसा का जन्म परिग्रह से होता है। कभी तृप्त नहीं । बस, कोणिक निरंकुश इच्छाओं का होता। ससार का | शिकार होता है और षडयन्त्र रचकर पिता वैभव तृष्णा की
को कैदखाने में डाल देता है ।। आग के लिए घी का काम देता है।
मगध का विख्यात सम्राट् श्रेणिक अब वह उस आग को
कैदी के रूप में अपनी जिन्दगी के दिन गिन बुझाता नहीं,
रहा है । एक दिन वह उस दशा में था कि बढ़ाता है।
जब भगवान् महावीर के समवसरण में धर्मोपदेश सुनने जाता था तो सड़कों पर हीरे
और मोती लुटाता जाता था । आज जीवन की अन्तिम घड़ियों में वही प्रभावशाली सम्राट् कैदी बना हुआ, पिंजरे में बन्द है।
पुत्र ने पिता को कैद करके कारागार में डाल दिया और आप सम्राट् बन बैठा । पर उसका परिणाम क्या निकला ? क्या कोणिक की इच्छाएँ तृप्त हो गयीं ? उसे सन्तोष मिल गया ? नहीं । निरंकुश इच्छाएँ कभी तृप्त नहीं होती । संसार का वैभव तृष्णा की आग के लिए घी का काम देता है । वह उस आग को बुझाता नहीं, बढ़ाता है । इसीलिए तो शास्त्रकार कहते हैं
जहा लाहो तहा लोहो, लाहा लोहो पवडूढइ । - उत्तराध्ययन सूत्र
51