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व्यक्ति अपने सुख-साधनों का अम्बार लगाता जाता है, अपने संग्रह एवं प्राप्त पदार्थों का मुक्ति एवं पूर्ण केवल अपने लिए ही उपयोग करता है, वह शान्ति भोग में उन पदार्थों का, जिन्हें उनकी आवश्यकता नहीं, त्याग में है। है- समान रूप से वितरण नहीं करता है, तो | लेने में नहीं, देने वह मोक्ष को प्राप्त नहीं कर सकता, वह पूर्ण में है। संग्रह करने शान्ति को नहीं पा सकता ।' मुक्ति एवं पूर्ण | में नहीं, वितरण शान्ति भोग में नहीं, त्याग में है। लेने में नहीं, करने में है। देने में है। संग्रह करने में नहीं, वितरण करने में है। संग्रह के जाल में आबद्ध व्यक्ति कभी भी मुक्ति के द्वार को नहीं खट-खटा सकता ।
दुनियाँ के प्रत्येक विचारक ने परिग्रह-संग्रह वृत्ति को पाप कहा है । अंग्रेजी के महान् कवि और नाट्य लेखक (Great poet and Dramatist) शेक्सपियर ने स्पष्ट शब्दों में कहा है- 'दुनियाँ में स्थित सब तरह के विषाक्त पदार्थों में मानव की आत्मा के लिए स्वर्ण-धन-संग्रह सबसे भयंकर विष है ।2 और ईसा (Chirst) का यह उपदेश तो विश्व-प्रसिद्ध है कि सूई के छिद्र में से ऊँट का निकलना सरल है, परन्तु पूँजीपति का मुक्ति को प्राप्त करना कठिन ही नहीं, असम्भव है । इससे स्पष्ट होता है कि संग्रह वृत्ति सब तरह से अहितकर है । वह स्वयं
1. असंविभागी न हु तस्स मोक्खो ।
___ - दशवैकालिक सूत्र 2. Gold is worse poison to men's souls than any mortal drug.
• Shakespeare 3. It is easier for camel to go through the eye of a needle than for a rich man to enter into the Kingdom of God.
- Bible
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