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वह बिना आवश्यकता के उनका संग्रह नहीं करेगा । वह वस्त्र या अन्य किसी भी पदार्थ को उसके डिजाइन, फैशन एवं सौन्दर्य को देखकर ही नहीं खरीदता है, वह उसे आवश्यकता की पूर्ति के लिए खरीदता है । अतः वह अनावश्यक वस्तु का संग्रह नहीं करता और ऐसा करना पाप समझता है ।
अनावश्यक संग्रह धार्मिक दृष्टि से लेक ही नहीं, सामाजिक एवं राष्ट्रीय दृष्टि से भी | अनावश्यक संग्रह पाप है, अपराध है । आज समाज एवं देश में धार्मिक दृष्टि से ही जो विषमता परिलक्षित होती है, उसमें नहीं, सामाजिक एवं संग्रह-वृत्ति भी उसका एक कारण है । | राष्ट्रीय दृष्टि से भी पूँजी-पतियों द्वारा अनाप-शनाप संग्रह करने | पाप है, के कारण बाजार में वस्तुओं की कमी हो अपराध है। जाती है । पदार्थों का आशा से भी अधिक | मूल्य बढ़ जाता है । साधारण व्यक्ति आवश्यक पदार्थ भी खरीद नहीं सकते । इससे समाज में, देश में दो वर्ग बन जाते हैं- अमीर और गरीब । जिसे हम आज की भाषा में पूँजीपति और कम्युनिस्ट भी कह सकते हैं । कम्युनिस्ट कहीं बाहर से नहीं आए हैं और न वे आकाश से टपक पड़े हैं। संग्रहखोर मनोवृत्ति ने ही कम्यूनिज्म (Communism) को जन्म दिया है। जिसका एकमात्र यही ध्येय है कि समाज एवं देश में से विषमता दूर हो । हवा, पानी और सूर्य के प्रकाश की तरह अशन, वसन और निवसन के साधन सबको समान रूप से सुलभ हों।
इसमें किसी भी विचारक के दो मत नहीं है । जैन धर्म भी अनावश्यक संग्रह वृत्ति का विरोध करता है । इसे पाप, अधर्म एवं संघर्ष की जड़ मानता है । भगवान् महावीर का यही उद्घोष रहा है- 'जो
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