Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
रस दोसु मासे विकतेसु तइयमासे वहमाणे दोहलका समयसि अयमेयरूत्रे दोहले पाउ भवित्था. धण्णओणंताओ अम्मयाओ तहेव णिरवसेसं भाणियव्वं जाव विणंति || एणं तं अहं पुत्ता ! धारिणीदवीए तरस अकाल दोहलस्स बहुहिं आएहि उवाहिय जात्र उप्पत्तिं अविंदमाणे ओहयमाण संकध्ये जावज्झियाहिं, तुम आप जाणामि, तं एतेणं कारणेणं अहं पुत्ता ? ओहय, जाव ज्झियामि ॥ ४५ ॥ जए से अभयकुमारे सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमटुं सोच्चा जिसम्म हट्टु जाव हिए, सेणियराय एवं वयासी माणं तुम्भे ताओ ! ओहयमण जावज्झियायह, अभयकुमार से ऐसा बोले- अहो पुत्र. सेरी छोटी माता धारणी देवी को दो मास व्यतीत होकर तीसरा मास चलाता है उस में उन को अकाल मेप का दोहला हुआ है कि उन माता को धन्य हैं, वे माताओं कृतार्थ हैं यावत् बेभारगिरि पर्वत की पास फीरती हुई विचरती है. वैसे ही मैं भी विचरू. अहो पुत्र ! धारणी देवी का ऐसा अकलमेघ का दोहला का बहुत अर्थ, उपाय से यावत् उपत्ति पूर्ण नहीं होने से आर्तध्यान करताथा. इतने में तू आया परंतु मुझे यह मालूम हुई नहीं. अहो पुत्र ! इस कारण से मैं आर्तध्यान करता हूं ॥४५॥ श्रेणिक राजाकी पाससे ऐसी बात सुनकर अभयकुमार हृष्ट तुष्टित यावत् आनंदित हुने और श्रेणिक राजा
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* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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