Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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स्थानाङ्गसूत्रे ननु न लोकोऽलोक इति अलोको लोकभिन्नानां घटादीनामेवान्यतयो भविष्यति, अलं वस्त्वन्तरपरिकल्पनाकष्टेन ? इति चेत् ,? उच्यते-यश्च यं निषिध्य
और निगमन ये पांच अवयव हैं अतः यह अनुमान पंचावयवोपेत है "लोको विद्यमानविपक्षः" यह प्रतिज्ञावाक्य है " सव्युत्पत्तिशुद्धपदाभिधेयत्वात्" यह हेतु वाक्य है " यद् यत् सव्युत्पत्तिकशुद्धपदाभिधेयं तत् तत् सविपक्षं भवति यथा घटस्याघटः" यह अन्वय दृष्टान्त है " सव्युत्पत्तिकशुद्धपदाभिधेयश्च लोकः" यह उपनय वाक्य है और " तस्मात् सविपक्षः" यह निगमनवाक्य है इस अनुमान का तात्पर्य ऐसा है-व्युत्पत्ति युक्त शुद्ध पद के द्वारा अभिधेय होनेसे लोक विद्यमानविपक्ष वाला है जो जो सव्युत्पत्तिक शुद्ध पद से अभिधेय होता है वह वह अपने विपक्ष वाला होता है जैसे घट अघटरूप विपक्ष वाला होता है सव्युत्पत्तिकशुद्धपद से अभिधेय लोक है इसलिये वह भी सर्वविपक्ष है
शंका-" न लोकोऽलोको" जो लोक नहीं है वह अलोक है इस तरह के नब् समास से अलोकरूप लोकभिन्न घटादिकों में से कोई एक ઉદાહરણ, ઉપનય અને નિગમન, એ પાંચ અવયવ છે. આ રીતે આ અનુभान पांय २१यवपित (पाय अवयवाथी युत) 2. " लोको विद्यमानविपक्षः" या प्रतिज्ञा अवयव छ, “ सब्युत्पत्तिशुद्धपदाभिधेयत्वात् " मा हेतु १४य छे. यद् यत् सव्युत्पत्तिकशुद्धपदाभिधेयं तत् तत् मविपक्षं भवति यथा घटस्याघटः" An Aqय दृष्टान्त छ, “ सव्युत्पत्तिकशुद्धपदाभिधेयश्च लोकः” 21 उपनय पाय छे भने “ तस्मात् विपक्षः " मा नियमन पाच्य छे. ३ मा अनु. માનને ભાવાર્થ સમજાવવામાં આવે છે વ્યુત્પત્તિયુક્ત શુદ્ધ પદના દ્વારા અભિધેય (ગ્રાહ્ય) હોવાથી લેક વિદ્યમાન વિપક્ષવાળે છે. જે જે પદાર્થ સવ્યુત્પત્તિક શુદ્ધપદ દ્વારા ગ્રાહ્ય હોય છે, તે તે પદાર્થ પિતાના વિપક્ષ (પ્રતિપક્ષ) વાળ હોય છે જ. જેમકે ઘટ અઘરૂ૫ વિપક્ષવાળા હોય છે. લેક પણ સવ્યુત્પત્તિક શુદ્ધપત્ર દ્વારા ગ્રાહ્ય છે, તેથી તે પણ સવિપક્ષ (વિપક્ષયુક્ત) હે જ જોઈએ. એ રીતે લેકના વિપક્ષરૂપ અલકનું અસ્તિત્વ સિદ્ધ થાય છે.
શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્રઃ ૦૧