Book Title: Agam 01 Ang 01 Aacharang Sutra Part 04 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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___आचारांगसूत्रे मूलम्-से मिक्खू वा, मिक्खुणी वा, गामाणुगामं दूइज्जमाणे सव्वं भंडगमायाए गामाणुगामं दूइजिज्जा ॥सू० ३६॥
छाया-स मिथुर्वा भिक्षुकी वा ग्रामानुग्रामं गच्छन् सर्व भण्डकमादाय ग्रामानुग्राम गच्छेत् ॥ सू० ३६ ॥ ___टीका-अथ मुनिमुद्दिश्यैव प्रतिवकुमाह-'से भिक्खू वा भिक्खुणी पा' स भिक्षुर्वा मुनि भिक्षुकी वा 'गामाणुगाम' ग्रामानुग्रामम् ग्रामाद् ग्रामान्तरम् 'दइज्जमाणे' गच्छन् विचरन् 'सव्वं भंडगमायाए' सर्व भण्डकम् पात्रादिकं धर्मोपकरणम् आदाय गृहीत्वैव 'गामाणुगाम' ग्रामानुग्रामम् ग्रामाद् ग्रामान्तरं 'दुइजिज्जा' गच्छेद् । एवं सा भिक्षुकी अपि गच्छनिर्गता ग्रामानुग्रामं गच्छन्ती सर्व भण्डकमादाय एव ग्रामानुग्रामं गच्छेदित्यन्वयः अत्रेद बोध्यम् उपकरणं तावत् अनेकविधं भवति । उक्तश्च-दुगतिगचउक्कपंचग नव दस एकारसेव वारसह ॥ इति ॥ द्विकं त्रिक चतुष्क पञ्चकम, नव दश एकादश द्वादश । इति। तत्र अच्छि. द्रपाणेजिनकल्पिकस्य शक्त्यनुरूप भिग्रह विशेषाद् द्विप्रकारकमुषकरणं भवति रजोहरणं मुख
अब एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाते हुए भी भाव साधु और भावसाध्वी सभी धर्मोपकरण भूत पात्रादिको साथ में लेकर ही जाय यह बतलाते हैं
टीकार्थ-'से भिक्खूवा भिक्षुणी-यह पूर्वोक्त भाव साधु और भाव साध्वी, 'गामाणुगामं दृइज्जमाणे' एक ग्राम से दूसरे गाम जाते हुए 'सव्वं भंडगमायाएसमीमाण्ड-पात्र वगेरह को लेकर ही, 'गामणुगामं दूइजिज्जा' एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाय इसी तरह साध्वी भी एक ग्राम से दूसरे गाम जाते हुए सभी धर्मोपकरण भूत पात्रादि को लेकर ही एक ग्राम से दूसरे ग्राम जाय साधु और साध्वी को धर्म का उपकरण अनेक प्रकार का होता है-कहा भी है-'दुगतिग चउक पंचग नव दस एकारसेव बारसह' द्वितंत्रिकं चतुष्कं पञ्चकम् नव दश एकादश द्वादश-दो या तीन या चार या पांच या नो या दश या एगारह या बारह, इनमें अच्छिद्रपाणि जिनकल्पिक को अपनी शक्ति के अनुसार अभिग्रह विशेष ४२५॥ भाट 'णिक्खमिज्ज वा पविसिज्ज वा' नी प्रवेश ४२वे। अर्थात् योग्य પાત્રાદિને લઈને જ ત્યાં જવું, આવવું . સૂ. ૩૫
હવે એક ગામથી બીજા ગામે જનારા સાધુ અને સાધ્વીએ ધર્મોપકરણ રૂપ બધા પાત્રાદિને પિતાની સાથે જ લઈને જવા માટેનું સૂત્રકાર કથન કહે છે –
Aथ-'से भिक्खू वा भिक्खुणी वा' त ति साधु सने साया 'गोमाणुगामं दूइज्जामणे' मे४ ॥मथी भी आम rdi 'सव्वं भंडगमायाए' सघा पात्र वियन वन 'गामाणुगामं दूइज्जिज्जा' से मथी भी आम ४ साधु भने सापीना धना साधना मने प्रा२ना हाय छे. ४थु ५५५ छ. 'दुगतिगचउक्क पंचग नव दस एक्कारसेव बारसह' मे, २ ३ मा यार , न म है मजा।२ १२
श्री माया
सूत्र : ४