Book Title: Vyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Author(s): Nagesh Bhatt, Kapildev Shastri
Publisher: Kurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
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पच्चीस
धात्वर्थनिर्णयः, निपातार्थनिर्णयः दशलकारादेशार्थाः, लकारार्थनिर्णयः तिङर्थनिरूपणम्
प्रातिपदिकार्थनिर्णय:
कारकनिरूपणम् नामार्थः
समासादिवृत्त्यर्थः
सुबर्थ निर्णयः वृत्तिविचारः
लम० के दो प्रकरण 'सनाद्यर्थविचार' तथा 'कृदर्थविचार' पलम० में सर्वथा ही नहीं है। इन प्रकरण-नामों का स्पष्ट निर्धारण न तो लम० के हस्तलेखों में मिला है न पलम० के । कुछ प्रकरण-नामों का निर्देश आदि में मिलता है तो कुछ का अन्त में । इन दोनों ग्रन्थों के अध्ययन से अनेक प्रकार के विरोध तथा विषमतायें एवं पाठभेद सामने आते हैं परन्तु निम्न विषमतायें पर्याप्त स्पष्ट हैं
घात्वर्थ निपातार्थनिर्णयः
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पलम के प्रथम प्रकरण 'शक्तिनिरूपण' के प्रारम्भ में स्फोट के आठ भेदों का उल्लेख करके वाक्यस्फोट की प्रमुखता का प्रतिपादन किया गया है -- " तत्र वर्णपदवाक्यभेदेन अष्टौ स्फोटाः तत्र वाक्यस्फोटो मुख्यः” । लम० में इन आठ स्फोटों का उल्लेख किये बिना ही वाक्यस्फोट की प्रमुखता के प्रतिपादन के साथ ग्रन्थ का आरम्भ हुआ है।
पलम० के 'लक्षणानिरूपण' के प्रारम्भ में बड़े बिस्तार से तार्किकों के मत के रूप में लक्षरणा के स्वरूप, भेद, निमित्त आदि के विषय में विचार प्रस्तुत करके अन्त में “सर्वे सर्वार्थवाचका:" इस सिद्धान्त के प्राधार पर लक्षणा वृति का खण्डन कर दिया गया है, जबकि लम० के इस प्रकरण का प्रारम्भ ही लक्षणा वृत्ति के साथ हुआ है । यहाँ लक्षणा वृत्ति का खण्डन पूर्वपक्ष के रूप में ही है । उत्तरपक्ष के रूप में लक्षणा वृत्ति के मण्डन का प्रयास भी यहाँ किया गया है । द्र०- " ननु सर्वेषां सर्वार्थवाचकत्वे लक्षणोच्छेद इति चेन्न योगिनां सर्वार्थवाचकत्वज्ञाने सत्यप्यस्मदादीनां तदभावात् ।" 'ग्रामो दग्धः ' जैसे प्रयोगों में पलम में जहदजहल्लक्षणा वृत्ति मानी गयी है जबकि लम० में, इस प्रकार के प्रयोगों में लक्षणा वृत्ति का स्पष्ट निषेध किया गया है। 'द्विरेफ' पद में भी पलम० के ग्रन्थकार ने 'लक्षितलक्षणा' मानी है जबकि लम० में इसका खण्डन किया गया है ।
पलम० के 'स्फोटनिरूपण' के प्रकरण में वृत्ति के श्राश्रयभूत शब्द के स्वरूप के विषय में नैयायिकों की दृष्टि से तीन विकल्पों का उल्लेख करके उनका खण्डन किया गया है जबकि लम० के इस प्रसंग में केवल दो ही मतों का उल्लेख है, तीसरे विकल्प "पूर्वपूर्व शाब्दबोधः " का उल्लेख लम० में नहीं मिलता । पलम० के यहाँ के उपक्रम वाक्य 'कोऽसौ वृत्त्याश्रयः शब्दः ?" के 'वृत्त्याश्रयः' पाठ के स्थान पर लम० में 'शक्त्याश्रयः' पाठ मिलता है । पलम० में चार प्रकार की वाणी - परा, पश्यन्ती, मध्यमा तथा वैखरी - का जो विवरण प्रस्तुत किया गया है वह सारा प्रसंग लम० में अनुपलब्ध है ।
'प्राकांक्षादिविचार' के प्रकरण में पलम० में 'तात्पर्य' का जो स्वरूप दिया गया है वह लम० में नहीं है । उसके बाद पलम० में 'प्रकरण' आदि को तात्पर्य का नियामक मानते हुए भी यह स्पष्ट कहा गया है कि केवल 'शक्ति' को मानने से काम नहीं चल
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