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तत्त्वभावना
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भूल श्लोकानुसार मालिनी छन्द मन हिरण न भ्रम तू भीम संसार वन है। जह काम शिकारी अधि तरु व्याधि धन है। जहें इन्द्रिय दुष्टं भील पोड़ा करत हैं । यवि दुर्गम शिवपदको चाह तेरे बसत है ॥३०॥ उत्पानिया-आधी जिजीन्द्र से प्रार्थना करते हैं कि मुझे उत्तम-२ गुणों की प्राप्ति होवे
हरिणी वृत्ति व्यसननिहतिज्ञानोद्यक्तिर्गुणोज्ज्वलसंगतिः । करणविजितिर्जन्मन्नस्सिः कषायनिराकृतिः ।। जिनमतरतिः संगत्यक्तिस्सपश्चरणाध्वनि ।
तरितुमनसो जन्मांमोधि भवंतु जिनेन्द्र ! मे ॥३१॥ अन्वयार्य-(जिनेन्द्र) हे जिनेन्द्र भगवान ! (जन्मांभोधि) संसार समुद्रको (तरितुमनसः) तिरनेकी मनशा रखने वाले (मे) मेरेको (तपश्चरणध्वनि) तपके साधन के मार्ग में (व्यसननिहतिः) धूत रमण आदि सातों व्यसनों का नाश (ज्ञानाधुक्तिः) शान को सन्नति (गुणज्ज्वल संगतिः) निर्मल गुण वालोंकी संगति (करणविजितः) इंद्रियोंकी विजय (जन्म त्रस्सि:)संसारसे भय (कषायनिराकृतिः) क्रोधादि कषायोंका त्याग इतनी बातें (भवंतु) प्राप्त होवें।
भावार्थ-यहां पर आचार्य कहते हैं कि जो भव्य जीव संसारसमुद्र से पार होना चाहता है उसको उन दोषों को दूर करने की व उन गुणों को प्राप्त करनेकी भावना करनी चाहिए जिनके कारण सुखसे भवसागर पार कर लिया जावे। पहली बात