________________
तत्वभावना
[ २२३
घनादि का संचय करते हैं उनके पिछले कर्मों की निर्जरा अधिक होती है क्योंकि दे भीतर जपले साथ मोह नही रखते हैं परन्तु जितने अंश रागभाव हैं उतने अंश बहुत थोड़ा कमबंध होता है । यहां पर दृष्टांत दिया है कि दही गुड़ और घी ऐसे पदार्थ हैं जिनको सन्निपात वाला खा लेवे तो उसका मरण हो जावे परन्तु यदि उनको निरोगी मानव खावे तो उसको बहुत अधिक बल प्राप्त हो । एक ही वस्तु फिसीको हानि का निमित्त व किसीको लाभका निमित्त होती है। इस तरह ज्ञानो को धनादि परिग्रह निर्जरा व मोक्षका कारण है जबकि अज्ञानोको वह आस्रव तथा कर्मबंध का कारण है।
तात्पर्य यह है कि हमको वीतरागी होनेका यत्न करना चाहिए। वह वीतराग भाव पदार्थों के सच्चे स्वरूप के ज्ञान से होता है। ज्ञानको महिमा स्वामी अमितगतिने सुभाषित रत्नसंदोह में इस तरह कही हैज्ञानं विमा नात्यहितान्नित्तिस्ततः प्रवत्तिनं हिते जनानां । ततो न पूर्वाजितकर्मनाशस्ततो न सौख्यं लमतेप्यमीष्टम् ||१६॥
भावार्थ-ज्ञान के विना मानवोंका अहितसे बचना व हितमें प्रवर्तना असम्भव है । विना स्वात्महितमें प्रवृत्ति किए पूर्व कर्मों का नाश नहीं हो सकता है और बिना कोके नाशके कोई अपने इष्ट सच्चे मोक्षसुख को कभी भी नहीं पा सकता है ।
मूल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडित छन्द जग में जो जो वस्तु कमबंधन रागी जनोंको करें। सो सो वस्तु विरागमा धरके हर कर्म मुक्ती कर॥