Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 348
________________ आत्मध्यान का उपाय [३२१. (७) भगवान निश्चय सम्यक्त, निश्चय सम्यग्ज्ञान व निश्चय सम्यक्चारित्ररूप होते हुए परम अद्वैस आत्मस्वभावमें तल्लीन हैं उसको इन नामोंसे स्मरण करें-(१) कामनाशक (२) अजज्मा, (३) अध्यक्त, () अतीन्द्रिय. (५) अगतमंन्ट (योगिगम्म, (७) महेश्वर, (८) ज्योतिर्मय, (९) अनाद्यनंत, (१०) सर्वरक्षक, (११) योगीश्वर, (१२) जगद्गुरु, (१३) अनन्त, (१४) मध्युत, (१५) शांत, (१६) तेजस्वी, (१७) सन्मति, (१८) सुगत, (१६) सिद्ध, (२०) जगतश्रेष्ठ, (२१) पितामह, (२२) महावीर, (२३) मुनिश्रेष्ठ, (२४) पवित्र, (२५) परमाक्षर, (२६) सर्वज्ञ, (२७) परमदाता, (२८) सर्वहितैषी, (२९) वर्धमान, (३०) निरामय, (३१) नित्य, (४२) अव्यय, (३३) परिपूर्ण, (३४) पुरातन, (३५) स्वयम्भू, (३६) हितोपदेशी, (३७) वीतराग, (३५) निरंजन, (३९) निर्मल, (४०) परम गम्भोर, (४१) परमेश्वर, (४२) परमतृप्त, (४३) परमामृतपानकर्ता, (४४) अव्याबाध, (४५) निष्कलंक, (४६) निजानन्दी, (४७) निराकुल, (४८) निस्पृह, (४६) देवाधिदेव, (५०) महाशंकर, (५१) परमब्रह्म, (५२) परमात्मा, (५३) पुरुषोत्तम, (५४)परम बुद्ध, (५५) अमर, (५६) अशरण शरण, (५७) गुणसमुद्र, (५८) शिवनारिसम्मोही, (५६) सकल तत्त्वज्ञानी, (६०) आत्मज्ञ, (६१) शुक्लध्यानी, (६२) परमसम्यग्दृष्टी, (६३) तीर्थङ्कर, (६४) अनुपम, (६५) अनन्तलोकावलोकन शक्तिधारी, (६६) परमपुरुषार्थी, (६७) कर्मपर्वतचूरकवज्र, (६८) विश्वज्ञाता, (६६) निराकरण, (७०.) स्वरूपाशक्त, (७१.) सकलागमउपदेशकर्ता, (७२) परमकृतकृत्य, (२३) परम संयमी, (७४) परमाप्त,

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