Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 356
________________ ' आत्म ध्यान का उपाय ॥ ॐ ॥ श्री अमितगतिसूरिविरचित - सम्तविक पाठ ( हिन्दी छंदानुवाद सहित ) [ ३२८ सत्त्येषु मैत्रों गुणिषु प्रमोई क्लिष्टेषु जोवेषु कृपापरत्वम | माध्यस्थभावं विपरीत वृत्तौ सदा ममात्मा विवधातु देव ॥ १॥ हे जिनेन्द्र ! सब जोवनसे हो मैत्री भाव हमारे । दुःख दर्द पीड़ित प्राणिन पर करूँ दया हर वारे ॥ गुणधारी सत्पुरुषन पर हो हर्षित मन अधिकारे । नहीं प्रेम नहि द्वेष वहाँ विपरीत भाव जो धारे ॥ १ ॥ शरीरतः कर्तुमनसशर्षित विभिन्नमात्मानमपात्तदोषम् । जिनेन्द्र कोषादिव खड्गयष्ट, तय प्रसादेन ममास्तु शक्तिः ||२५|| है जिनेन्द्र ! अब भिन्न करनको इस शरीर से आतम । जो अनन्त शक्तीवर सुखमय दोषरहित ज्ञानातम || शक्ति प्रगट हो मेरेमें अब तब प्रसाद परमातम जैसे खड्ग म्यानसे काढत अलग होत तिमि आतम ||२|| दुःख सुखे वैरिणि वन्धुवर्गे योगे वियोगे सबने धने वा !

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