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भारमध्यान का उपाय
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यो व्यापको विश्वजनोनवृत्तः
सिकासि नकर्मय ध्यातो धुनीते सकलं विकारं,
स वेववेयो हृदये ममास्ताम् ॥१७॥ जिसका निर्मल ज्ञान जगत में है व्यापक सुखदाई। सिद्ध बुद्ध सब कर्म बंध से रहित परम जिनराई ॥ जिसका ध्यान किये क्षण क्षण में सब विकार मिट जाई। परमदेव मम हिय में तिष्ठो यही भावना भाई ॥१७॥ न स्पृश्यते कर्मकल डूदोष
यो ध्वान्तसंघरिव तिग्मरश्मिः । निरञ्जनं नित्यमनेकमेक
तं देवमाप्तं शरणं प्रपद्ये ॥१॥ कर्म मैलके दोष सकल नहिं जिसे पर्श पाते हैं। जैसे सूरज की किरणों से तम समूह जाते हैं। नित्य निरंजन एक बनेकी इम मुनि गण घ्याते हैं। उसी देव को अपना लखकर हम शरणा आते हैं ॥१८॥ विभासते यत्र मरोधिमालि,
नविद्यमाने भवनावभाति । स्वारमस्थितं बोधमयप्रकाश
तं देवमाप्तं शरणं प्रपद्ये ॥१९॥ जिसमें तापकरण सूरज नहि ज्ञानमयो जगभासी । बोध भानु सुख शांति सुकारक शोभ रहा सुविफासी ॥