Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 389
________________ - ' 362 ! - आत्मध्यान का उपाय -- --- -- प्रशस्ति कोही... अवध लखनऊ मप्रमें, अप्रवाल शुभ वंश / मंगलसैन सु शास्त्रवित धर्मी निर्मल हंस // 1 // तिन सुत मक्खनलालजी, तीजा सुत हूं जास। सोसल बत्तिस बय थकी, करत त्याग अभ्यास // 2 // उन्निस पैंतीस विक्रमा, जन्म कार्तिक मास / उन्निस पम्वासी विर्षे, रुहतक बस चौमास / / 3 / / मन्दिर तीन दिगम्बरी, बालक माला एक / कन्याशाला भी लस, धर्मशाल पुनि एक // 4 // औषधिशाला दो लसे, एक सव समुदाय / ओरावरसिंह से चले, द्वितीय रुग्न सुखदाय / / 5 / / अग्रवाल जैनी बसें दो शत घर समुदाय / निज-२ मति अनुसार सब, सेवत धर्म स्वभाय / / 3!! कपूरचन्द अरु दोपचन्द, तथा जयन्तिप्रसाद / नानकचन्द सुलालधन्द, श्यामलाल दुखवाद / / 7 / / रत्नलाल उग्रसेनजी, और जिनेश्वर दास / आदि वकील प्रवीण हैं, सिंह दीवान उदास ||8|| मास्टर हैं शिवराम बुध, रामलाल विद्वान / इत्यादि सार्धाप में, किया सुनिज कल्याण ||6|| अमितिगती आचार्यकृत, तत्वमाखना ग्रन्थ / संस्कृत से भाषा लिखी, चले ध्यान का पंथ // 10 // नरनारी चित्त दे पढ़ो, समझों अथ विचार / मनन करो आतम लखो, पावो ज्ञान उदार // 11 // धी जिमेन्द्र के ध्यान से, होवे आतम ज्ञान / आतम सुख नितप्रति रहे, होवे सब कल्याण // 12 // मंगल श्री अरहंत है, मंगल सिद्ध महान / मंगल श्री जिनधर्म है, "सीतल" का सुखवान // 13 // 0 बोतल / ता० 4-1028 / ------

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