Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 388
________________ मारमध्यान का उपाय बड़ा अचंभा लगता जो तू....... बड़ा अचम्मा लगता जो तू अपने से अनजान है। पर्यायों के पार देख ले आप स्वयं भगवान है ।।टेका। मन्दिरतीरथ जिनेन्द्र जिनागम उसकी खोज बताते हैं। जप तप संयमशील साधना में उसको ही तो ध्याते हैं। अब तक उसका पता न पाया दुनिया में भरमाते हैं। चारों गतियों के दुख पाकर फिर निगोव में जाते हैं। पर्यायों को अपना माना यह तेरा अज्ञान है ।।१ तू अनन्त गुण का धारो है अजर अमर सत अविनासी । शुद्ध बुद्ध तू निस्य निरंजन मुक्ति सबन का है वाली। तुममें सुख साम्राज्य भरा क्यों मोन रहे जल में प्यासी। अपने को पहचान न पाया घे हैं भूल तेरी खासी। तू अचित्य शक्ति का धारी तू 'मव की खान है ॥२ तीनों कर्म नहीं तेरे में यह तो अड़ की माया है। तू धेतन है ज्ञानस्वरूपी क्यों इनमें भरमाया है। सुख की सरिता है स्वभावमें जिमवर ने बतलाया है। जिसमे अन्तर में खोजा है उसने प्रभु को पाया है। जिनवाणी मां जगा रही है क्यों व्यर्थ बना मावान है। नव तत्वों में रहकर जिसने अपना रूप नहीं छोड़ा। आतम एक रूप रहता हे कहीं अधिक ना ही चोड़ा। यै पर्याय क्षणभंगुर हैं इनका सेरा क्या जोड़ा। सब कुछ मन जाता जिसने पर्यायों से मुख मोड़ा। अव्यष्टि अपना कर प्राणी बन जाता भगवान है ।।४

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