Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 374
________________ I आत्म ध्यान का उपाय [ ३४७ उसके सिवा कोई किसी को कुछ नहीं देता कभी । ऐसा समझना चाहिये एकाग्र मन होकर सदा, 'बाता पर है भोगका' इस बुद्धिको खोकर सदा ॥३१॥ सबसे अलग परमात्मा है अमितगति से बन्ध है, जीवगण ! वह सर्वदा सब भाँति ही अनवद्य है । मनसे उसी परमात्मा को ध्यान में जो लायेगा, वह श्रेष्ठ लक्ष्मी के निकेतन मुक्ति पद को पायेगा ॥ ३२ पढ़कर इन द्वात्रिंश पद्य को, लखता जो परमात्मवन्द्य फो । वह अनन्यमन हो जाता है, मोक्षं निकेतन को पाता है ||३३|| आलोचना पाठ दोहा बंदों पाँचो परम गुरु, चौबीसों जिनराज । करूं शुद्ध प्रालोचना, शुद्धि करन के काज ॥ १४ सखी छन्द सुनिये जिन अरज हमारी, हम दोष किये प्रति भारी । तिनको प्रब निवृत्ति काजा, तुम सरन लहो जिनराज ॥२ इक वे ते च इंद्री वा, मन रहित सहित जे जीवा । तिनकी नहिं करुणा धारी, निरवह हूं घात विचारी ॥३

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