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आत्मध्यान का उपाय
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फिरजागि विषय बनधायो, नानाविध विषफलखायो।१४
आहार विहार नीहारा, इनमें नहि जतन विचारा । बिन देखी धरी उठाई, बिन शोधी वस्तु जु खाई ॥१५ तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकलप उपजायो । कछ सुधि बुधि नाहि रही है, मिथ्यामति छायगई है ।।१६ मरजादा तुम हिंग लीनो, ताहू में दोष जु कोलो। मिन-२ अब कसे कहिए, तुम ज्ञान विर्षे सब पइये ॥१७ हा हा ! मैं दुठ अपराधी, अस जीवन-राशि विराधो। थावरकोज तन न कोनी, उर में करुणा नहि लोनी ॥१८ पृथिवी बहु खोद कराई, महलादिक जागां चिनाई । पुनि बिन गाल्यो जलढोल्यो, पंखातपवन बिलोक्ष्यो॥१९ हा हा ! मैं अदयाचारी, बहु हरितकाय जु विदारी। तामधि जीवन के खंदा, हम खाये धरि पानंदा ॥२०॥ हा हा ! परमाद बसाई, बिन देखे अगनि जलाई। तामध्य जीव जे पाये, ते हू परलोक सिधाये ॥२१॥ बोध्यो अन राति पिसायो, ईधन बिन सोधि जलायो। झाड़ ले जागां बुहारी, चोंटीप्राविक जीव बिदारी ॥२२ जल छानि जिवानी कोनी, सो हू पुनि डारि जु दीनी। नहिं जल-थानक पहुंचाई, किरिया दिन पाप उपाई ॥२३ जल मल मोरिन गिरवायो, कृमि-कुल बहुघात करायो। नवियन बिच चोर धुवाये, कोसन के जीव मराये ॥२४