Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 384
________________ आस्मध्यान का उपाय [ ३५७ सामायिक पाठ ( अमितगति आचार्य कृत ) ( अनुवादक - श्री युगल जी ) प्रेम भाव हो सन जीवों से, गुणी जनों में हर्ष प्रभो । करुणा खोत हे दुखियों पर, हुजंम में मध्यस्थ विभो ||१|| आया हो, शरोर से भिन्न प्रभो । क्यों होती तलवार म्यान से यह अनन्त बल दो मुझको ॥२॥ सुख-दुःख मेरी वधु वर्ग में, कांच कनक में समता हो । बन उपवन, प्रासादकुटी में नहीं खेद नहि ममता हो ॥३॥ जिस सुम्बर-सम पत्र पर चलकर जीते मोहमान मन्मथ । वह सुम्धर बच ही प्रभु 1 मेरा, बना रहे अनुशीलन पथ ॥४॥१ एकेन्द्रिय आविक प्राणी को, यदि मैंने हिंसा को हो । शुद्ध हृदय से कहता हूं वह, निष्फल हो दुष्कृत्य प्रभो ॥ ५ ॥ मोक्ष मार्ग प्रतिकूल प्रवर्तन, जो कुछ किया कषायों से । विपथ-गमन सब कालुष मेरे, मिट जायें सद्भावों से ॥६॥ 1 चतुर विष विक्षस करता, त्यों प्रभु ! मैं भी आदि उपांत । अपनी निन्दा आलोधन से, करता हूं पापों को शांत ॥७॥ सरक अहिंसाबिक व्रत में भी, मैंने हृदय मलीन किया । व्रत- विपरोत- प्रवर्तन करके, शोलाचरण विलोन किया ॥८॥ कभी वासना की सरिता का, गहन सलिल मुझ पर छाया । पी पोकर विषयों की मदिरा, मुझमें पागलपन नामा ॥॥

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