________________
आत्मध्यान का उपाय
योऽन्तर्गतो योगिनिरीक्षणीयः,
स देवदेवो हरये ममास्ताम् ॥१४॥ सकल दुःख संसारजाल के जिसने दूर किये हैं। लोकालोक पदारथ सारे युगपत् देख लिए हैं ।। जो मम भीतर राजत है मुनियों ने जान लिए हैं। परमदेव मम हृदय विराजो सम रस पान किये हैं ॥१४॥ विमुक्तिमार्गप्रतिपादको यो,
यो जन्ममयुष्यसनाद्व्यतीतः। विलोकलोको विकलोकल
सवेक्वेवो हृदये ममास्ताम् ।।१॥ मोक्ष मार्ग क्यरत्नमयी जिसका प्रगटावनहारा । जनम मरण बादि दुःखोंसे सब दोषोंसे न्यारा॥ नहिं शरीर नहिं कलङ्क कोई लोकालोक निहारा। परमदेव मम हृदय विराजो तुम बिन नहिं निस्तारा ॥१५ कोड़ीकृताशेषशरीरिवर्गाः,
___ रागावयो यस्य न सन्सि बोषाः। निरिडियो ज्ञानमयोऽनपायः,
सवेवदेवो हरये ममास्ताम् ॥१६॥ जिनको संसारी जीवोंने अपना कर माना है। राग द्वेष मोहादिक जिसके दोष नहीं जाना है ।। इन्द्रिय रहित सदा अविनाशी ज्ञानमयी बाना है। परमदेव मम हियमें तिष्ठो करता कल्यामा है ॥१॥