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आश्मध्यान का उपाय
श्री अमितगति सूरि विरचित सामायिक पाठ
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परमात्म द्वात्रिंशतिका
{ हिन्दी पद्यानुवाद - श्री रामचरित उपाध्याय) -चित देव, मेरी आत्मा धारणा करे इस नेम को, मंत्री करे सब प्राणियों से गुखों जनों से प्रेम को । उन पर दया करतो रहे, जो दुख ग्राह-ग्रहीत हैं, उनसे उदासी सी रहे जो धर्म से विपरीत हैं ॥१॥ करके कृपा कुछ शक्ति ऐसो दीजिए मुझ में प्रभो ! तलवार को क्यों म्यान से करते विलग हैं हे विमो !! गतवोष श्रात्मा शक्तिशाली है मिली मम अंग से, उसको विलग उस भाँति करनेके लिए ऋजु ढंग से ॥१२॥ नाथ ! मेरे चित्त में समता सदा भरपूर हो, सम्पूर्ण ममता की कुमति मेरे हृदय से दूर हो । वनमें, भवनमें, दुख में, सुख में नहीं कुछ भेद हो, अरि-मित्रमें मिलने बिछड़ने में न हर्ष न खेद हो ॥३॥ अतिशय घनी तम राशिको दीपक हटाते हैं यथा, दोनों कमल-पद श्रापके प्रज्ञान-तम हरते तथा ।
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प्रतिबिम्ब सम स्थिर रूप वे मेरे हृदय में लीन हों,
मुनिनाथ | कोलित-तुल्य वे उरपर सदा प्रासीम हों ॥४॥