Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 355
________________ ३२८ !] : स्वरों के द्वारा हूँ मंत्र ध्यानकी विधि नीचे प्रकार है इससे स्वर शुद्ध होता है। पहले नाभिके कमलके मध्य में हुँको चंद्रमा के समान चमकता हुआ विचारे। फिर उसीको विचारे कि दाहने स्वरसे बाहर निकाला और चमकता हुआ आकाश में ऊपर को चला गया फिर लोटा और बाएं स्वर से भीतर प्रवेश करके नाभिकमल में ठहर गया। इस तरह बराबर अभ्यास करके को घुमाकर नाभि कमल में ठहरना चाहिए । आत्मध्यान का उपाय विशेष कथन श्री ज्ञानार्णंव में ग्रन्य देखकर जानना चाहिए । पूरक, कुम्भक, रेचक का अभ्यास खुली हवा में करने से शरोथ की शुद्धि रोकने का साधन है ही उपयोग समझकर किसी जानकार विद्वानकी मदद से प्राणयाम का अभ्यास करना चाहिए। इस तरह ध्यान का कुछ स्वरूप मोक्षार्थी व आत्मानन्द के ध्यानसे जीवोंके हितार्थ लिखा गया है। इसे पढ़कर भव्यजीव अवश्य निरंतर ध्यान का अभ्यास करो । अभ्यास से अवश्य ध्यान की सिद्धि हो जाती है। यह तस्वभावना ग्रन्थ परम हितकारी है जो मनन करेंगे परम लाभ पायेंगे । इति । मिती आसोज वदो ५ गुरुवार वीर सं० २४५४ विक्रम सं० १९८५ ता० ४ अक्टूबर १९२० । ० सीतल ।

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