Book Title: Tattvabhagana
Author(s): Mahavir Prasad Jain
Publisher: Bishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf

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Page 353
________________ आत्मध्यान का उपाय (२) आधे चन्द्रमा के समान सफेद वर्ण जलमंडल है। इस मंडल में पवन शीघ्न नीचे को तरफ ठळकको लिये ही १२ अंगुल बाहर तक बहता है। (३) नीले रंग का गोल पवनमंडल है। इसमें पचन सब तरफ बहतो हुई ६ अगुल तक बाहर आवे। यह उष्ण व भीत दोनों तरह का हाती है। (v) अग्नि के लिंग के रंग समान तीन कौन के आकार मग्निमंडल है। इसमें पवन ऊपर को जाता हुआ चार अंगुल तक बाहर आवे । यह सा होती है। नाक के स्वर दो हैं, बाईं तरफके श्वास को चंद्र व दाहिनी तरफ के श्वांसको सूर्य कहते हैं । एकमास के शुक्लपक्ष की पड़वा (प्रतिपदा), दूज व तीज इन तीन दिन प्रातःकाल वामस्वर या चंद्रस्वर चलना शुभ है फिर तीन दिन प्रातःकास दाहिना फिर तीन दिन प्रातः काल बायां इस तरह १५ दिन तक बदलता रहता है। कृष्णपक्षको प्रतिपदा, दूज या तीजको प्रातःकाल दाहिना या ख्यं स्वर चलना शुभ है। फिर तीन तीन दिन प्रातः काल स्वत्र बदलता रहे । यदि इससे विरुद्ध स्वर चलें तो अशुभ जानने चाहिए। तो भी एक स्वर नाककी बाईं तरफ का या दाहिनी तरफका बराबर २॥ घड़ी या एक घंटे तक चलता रहता है फिर वह दूसरे दाहिनी या बाईं तरफ का हो जाता है। किसी श्राचार्य ने २४ घंटे में १६ बार पवन का पलटना लिखा है। ऊपर कहे हुए पृथ्वी आदि चार मंडलोंके पवनको पहचानने के लिए दूसरी रीति यह है कि अपने कानों को दोनों हाय .

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